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ये सच है कि नाम में कुछ भी नहीं रखा परंतु नामाकरण केवल निजी तौर पर नाम देने या रखने तक ही सीमित नहीं है अपितु इसका उद्धेश्य उस नाम से जुड़ी अपनी मानसिकता, परंपरा, सांस्कृतिक ,समाजिक और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों एवं उनके कार्यों की प्रमाणिकता और प्रसांगिकता से नवजन्मित पीढ़ी का साक्षात्कार करवाना भी है। किसी को जन्म देने का फैसला निजी हो सकता है परंतु जन्म लेना और जन्म देने हेतु चयनित होना, प्राकृतिक और गरिमापूर्ण है और यह भी सत्य है कि जन्म लेने वाला समाज में जन्म लेता है ना कि किसी एक परिवार में। तभी भविष्य में वह समाज का प्रतिनिधी बनकर अपने कार्यों से ऐतिहासिक बनता है।
नाम जानवरों के भी रखे जाते हैं परंतु बड़े होकर वो हमसे उस नाम का अर्थ नहीं पूछते लेकिन हमें अपनी पीढ़ी को उसके नाम का अर्थ या उस ऐतिहासिक व्यक्ति के कार्यों से अवगत करवाना है क्योंकि वह (पीढ़ी) बुद्धजीवि और अभिजात्य है। प्रश्न करता है और करेगा।
क्या ये सच नहीं है कि हम अपनी पीढ़ी को प्रदत्त नाम के अनुरूप देखना चाहते हैं। हम नामकरण के बहाने बच्चे के व्यक्तित्व के प्रति अपनी आशाओं और स्वप्नों को ही तो संचरित करते हैं। हम एक प्रभावी नाम देकर उसके प्रतिकूल व्यक्तित्व की उम्मीद क्यों करें?
हम रावण नाम के बच्चे को क्या अर्थ बतायेंगे? उसके क्या कर्म बतायेंगे? ———-
यही कि महाज्ञानी रावण लंका का बड़ा ही अत्याचारी ,निरंकुश राजा था जिसने मर्यादापुरुषोत्तम् भगवान श्रीराम की पत्नि माता सीता का हरन् किया और श्रीराम के हाथों मारा गया। उसकी अतुलित शक्तिबल और ज्ञान से प्रेरित होकर तुम्हारा नामकरण हुआ है। —–तो नैतिकता कहां गयी।
पीढ़ी पुछेगी- तब ज्ञान,मर्यादा और शक्ति के द्योतक श्रीराम के नाम पर मेरा नाम क्यों नहीं?
तैमूर क्यों सिर्फ अली क्यों नहीं?
कुतुबुद्दीन क्यों हुसैन क्यों नहीं?
जयचंद क्यों पृथ्वीराज क्यों नही?
मानसिंह क्यों प्रताप क्यों नहीं?
विभीषण क्यों लक्ष्मन क्यों नहीं?
यद्यपि विभीषण रामभक्त था फिर भी उसे भेदी ही कहा जाता है।
हम ये नामकरण नहीं कर सकते क्योंकि हम अपनी पीढ़ी के व्यक्तित्व को उनके (विभीषण, जयचंद, रावण, मानसिंह) कर्मकाँडों से आच्छादित या महिमामंडित नहीं कर सकते। उन्हें तैमूर, कुतुबुद्दीन, जयचंद, मानसिंह का अनुगामी नहीं बना सकते।अब अगर कहा जाये कि “तैमूर” शब्द का शाब्दिक अर्थ शायद खुद्दार होता है और ये लोगों को पता भी होगा फिर भी कहना शायद गलत नहीं होगा कि कुछ नामों का शाब्दिक अर्थ उनके द्वारा किये गये कृत्यों की विहंगम छाया में विलुप्त हो जाते हैं। अगर तैमूर का अर्थ पूछा जाये तो ज्यादातर लोग विध्वंशकारी आक्रांता ही कहेंगे जिसने भारत पर आक्रमण कर भयंकर लूटपाट मचाई।
इसी तरह रावण का शाब्दिक अर्थ न बताकर लंका का राजा कहेंगे, विभीषण अर्थ रावण का भाई कहेंगे। जयचंद को गद्दार कहेंगे तो राम को अयोध्या का नरेश। लेकिन शाब्दिक अर्थ नहीं बतायेंगे। तात्पर्य है कि इनके कर्म ही इनके नाम का पर्याय हो गये हैं।
यह भी सच है कि दुनिया में सहस्त्रों तैमूर हैं जो समाज के हर वर्ग में मौजूद हैं, कुछ सफल व्यवसायी होंगे, नौकरी-पेशा वाले होंगे, कुछ सैनिक बनकर राष्ट्र की सेवा कर धन्य हो रहे होंगे, कुछ सफलता के उच्चतम् सोपान पर होंगे तो कुछ समाज के निम्न वर्ग में। उनपर तो हंगामा नहीं पर इस तैमूर पर क्यों?
क्योंकि इस तैमूर के माता-पिता समाज के जिस उच्चतम् सोपान पर हैं, वहां से उनके द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज निर्देशित होता है। वे न जाने कितने युवाओं के रोल माॅडल हैं। उन्हें उनकी सफलताओं ने समाज को नयी दिशा, दशा और गति प्रदान करने की योग्यता दी है। अतः उनके द्वारा उठाया गया हर कदम निजी न होकर स्वतः समाज को गति देता है। ये जिसे विज्ञापित करते हैं समाज उसे गंभीरता से लेकर अपनाता है या उस पर मंथन अवश्य करता है। सत्य है समाज को निर्देशित करने की शक्ति सबके किस्मत में नहीं होती, सबकी बातें चर्चित नहीं होती, हर तैमूर चर्चित नहीं होता। सफलता के उच्चतम् शिखर पर बैठे इस जोड़े को यह सोचना जरूर चाहिये कि जो तैमूर विज्ञापित हो रहा है क्या वो होना चाहिये और कुछ सालों बाद पुत्र को तैमूर की क्या कहानी सुनायेंगे, पटकथा जरूर लिख लेनी चाहिये।
इस आशय की चर्चा अवश्य होनी चाहिये कि क्या हम अपने गौरवशाली अतीत के स्वर्णिम हस्ताक्षरों और महानायकों के सुकृत्यों और प्रचंड-प्रखर व्यक्तित्व से वमिुख होकर आक्रांताओं के महिमामंडन की ओर अग्रसर हो चले हैं?
—ऋतुराज
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